Wednesday, May 27, 2015

आधुनिकता और लिखना, भाग -I

लिखना एक कला है, ठीक उसी तरह जैसे जिन्दगी जीना। यंहा लिखना से तात्पर्य सिर्फ किताबे लिखने से नहीं है। किताबे लिखना और बेचना एक आधुनिक अवधारणा हो सकती है, लेकिन लिखना और लिख कर अपने विचारो को दुसरो तक पहुचना विशुद्ध रूप से एक पुरातन कला है।  भले ही वो ताम्र-पत्तो के द्वारा ही क्यों न हो। हां, काल के भिन्न भागो में इसका प्रयोजन भिन्न-भिन्न रहा है।  

राज्य कहती है - आप कौन है?  हम तोआप को नही जानते। हम  सिर्फ हसताक्षरको जानते है। आप की जमीं, चल और अचल सम्पत्ति सब हस्त्ताक्षर से चलती है।  एकेडेमिया  तो बस यही है की आप कितना लिखते है, बस लिखते जाइए।  लिखाई, छपायी (Publishing Industry) बन चुकी है। बदलते समय में यह एक  स्टेटस बन चूका है। आज लिखना एक अपरिहार्य  जरुरत है। इसके बिना काम ही नही चल  सकता है।  

सवाल ये है की लिखना इतना जरुरी क्यों है? क्या मौखिक ज्ञान का कोई आधार नही है?  हमारे यहाँ तो लम्बे  समय से विजडम (wisdom) एक जनरेशन से दूसरे जनरेशन में ट्रांसफर होता रहा है। आज भी मौखिक ज्ञान के अधार पर पूर्वानुमान सही होता है। यंहा तक की आदिवासी समुदाय आज भी बिना किताबी ज्ञान के जीवन यापन कर रहे है। 

"स्कूल जाना-आना" एक अनुष्ठान है, जिसे आधुनिकता  ने बल दिया है।  अंग्रेजी में इसे rite of passage कहते है। २० वी सदी  में  सबसे ज्यादा लोग स्कूल से जुड़े है। यह अब तक की सबसे बड़ी क्रांति के रूप में जानी जाती है। स्कूल पडने, लिखने और गणित की कला में निपुण करने की दावा करता है और क्षमता भी रखता  है।  अतः स्कूल आज के समय की अपरिहार्य निष्ठा है. 

लेकिन आज स्कूल सवाल के घेरे में है।  Compulsory Schooling को सब जगह , दुनिया के सभी भागों में विरोध का सामना करना पर रहा है। वास्तव में सवाल के घेरे में है वह प्रणाली और फ्रेमवर्क है, जो स्कूल को मशीनीकरण करने पर मजबूर कर रहा है उदाहरण के तौर पर - रीसर्च के दौरान बार-बार यही पाया गया है की स्कूल equaliser (एक ऐसा संस्था समाज में फैली असमानता को कम करता हो) की  भूमिका के बदले यह समाज में विद्धमान असामनता की प्रतिलिपि को प्रस्तुत करता है। आज विद्यालय में वही पढ़ाया जाता है जो अभिजात वर्गों की जरुरत होती है. 

मेरा सवाल ये है की अगर आप की माँ  यह बताती है की पढ़ाई करते समय या खाना खाने समय बातें नहीं करने चाहिए। पड़ोसी ये बताते है ये अंकल है, शिष्टाचार के साथ बात करनी चाहिए।  घर का मजदूर ये कहता है की गेंहु और गुलाब के लड़ाई में जीत हमेशा गेंहू की  होती है, अतः श्रम एक बड़ी शक्ति है। घर की दीवारे कहते है की आप की नीव मजबूत होनी चाहिए। पर्व तयोहार, ये संदेश के साथ आते है की समाज एक संस्था है, जो दैवीय रूप में है। और आप अगर कला के शौकीन है जैसे पटना कला, मधुबनी कला तो  कोई जरूरी नहीं है की आप मैकॉले  द्वारा बताया हुआ पर रास्ता- Indian in colour, taste in english पर चले और इन्हे के  द्वारा  तय किये मानक को हीं "last word" माने।  समय सही है की हम इन सब बातों पर बैठ कर बातें करे और पुनर्विचार करे।  



जारी...