Saturday, May 2, 2015

एक आशियाना को

जब राहगीर
राह चलते थक जाता
एक आस बनीं रहती
चलो-चले,
गाछ के छावं में
एक आशियाना को

पीपल, बरगद के नीचे
थके-मांदे लोग,
धुप से तृप्त
जेठ-बैसाख की गर्मी में
गाछ के नीचे 
एक आशियाना को

अनजानो के साथ बैठना
बैठे-बैठे रिश्तेदारी का फर्ज निभाना
और गाअव-घर का, खैरेयीत लेना
फिर, बूढ़े बुजुर्ग का "शुरू" हो जाना

अपने फल्ना होलहुँ
हम तोहर "यी" हियो
तू हमर यी हँ
फलना बाबु ठीक हथीं
-यही होता था
दनियावां से तोप का पैदल सफ़र में 
एक आशियाना को

न जाने,
कैसे,
मुठान से, खानदान का खातीयान बता देना
मानों, इन्होने हीं encyclopedia की एडिटिंग की हों

गावों से,
शहरो से,
छायादार गांछो का विलुप्त होना

गाछ की जगह
सोशल साईटो का हो जाना

"वर्चुअल मुलाकात"
अनजान, रु-ब-रु होते लोग
फेसिअल एक्सप्रेशन, स्माइली, वगैरह, वगैरह
लेकिन
इन स्माइली के पीछे
रह जाते, न जाने कितने अवसाद

इन सोशल मीडिया के पीछे
नही मिलता
जीने का शहर
एक-कोना
कुछ पल हँसने और हँसाने को 


छिपी रह जाती है,
बेबफाई
बची रह जाते है,
तन्हाई और यादें
और
तडपते रह जाते है
लोग
एक आशियाना को

लोग-बाग
अपने आप को, सोशल और इको-फ्रेंडली
बनाने के लिए करते हैं लाइक
गरीब बच्चों की तस्वीरों को 
और फुलों पक्षियों को 

हाँ,
कभी-कभी
दिख जाती है,
गुडियां,
गौरैया की
और खींचे ले आती है, ये गावों को
एक आशियाना को

तब याद आती है
दादी और नानी की
एक आशियाना को

गौरैया से लगाव
और उस से जुड़े कुछ यादें-
घर के हर एक मोड़
एक कोना
याद दिलाती है
एक आशियाना को

चाहे वो सहतिर से बना छत
मिट्टी से लिपी दीवाल
ताखा, कोठी या
खलिहान की बोझा
याद  दिलाती है
एक आशियाना को

आप टूट जातें है 
जब
आप को पता चलता
गौरैया
अब "देश" यांनी  गावँ में शायद ह़ी दीखती
न जाने कब ये गौरैया देश को आती-जाती
बेगाना होती ये गौरैया
एक आशियाना को

चलिये, चलते हैं
स्क्रीन के जिंदगी के पीछे
जिंदगी को संवारे
खोये हुए वज़ूद को निखारे
एक आशियाना को

नन्ही गौरया
और अपने दोस्तों की अहमियत को समझे
खैरियत ले
अलगावाद और अवसाद से बचे
एक आशियाना को


सामाजिक जीवन को संजीदा,
और सांस्कृतिक बिरान हो चुकी
स्मार्ट शहर को
सवाँरे
और अपने
गावँ को
एक आशियाना को


रवीश रजनी
छात्र (Electrical Enginering)
ग्राम+डाकघर - तोप
पटना, ८०१३०४
बिहार
संपर्क: raveeshrajni@gmail.com
३ मई, २०१५ 


ब्लॉग The Bodhi Tree के ओर से रवीश रजनी को आभार और शुभकामनांए 
पुनःप्रकाशन प्रतिबंधित
अपनी रचना भेजने के लिये लिखे: samrajyatope@gmail.com

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